सभी बंधुओं को परमानन्द उपाध्याय का राम राम | श्री आमेटा औदीच्य ब्राह्मण युवा संगठन द्वारा आयोजित इस प्रस्तुति “आपणो संस्कृति” में आप सबका स्वागत करते हैं | आपणो संस्कृति में आज का विषय हैं – जनेऊ
आज के इस प्रस्तुति में हम जानेंगे
क्या हैं जनेऊ ?
क्यों धारण किया जाता हैं जनेऊ ?
क्या जनेऊ केवल
ब्राह्मण धारण कर सकते हैं ?
क्या महिलाएं भी
जनेऊ धारण कर सकती हैं ?
आइये एक एक करके इन प्रश्नों के उत्तर जानते हैं |
क्या हैं जनेऊ ?
जनेऊ को यज्ञोपवित
भी कहा जाता हैं | जनेऊ का धारण उपनयन संस्कार के साथ प्रारंभ होता हैं | उपनयन अर्थात
निकट लाना | यह संस्कार शिष्य को गुरु के निकट लाता हैं, गुरु शिष्य को शास्त्रों
के निकट लाते हैं और शास्त्र उसे ब्रह्म के निकट लाता हैं | जनेऊ तीन धागे से बनता
हैं | यह तीन धागे त्रिदेव याने ब्रह्मा, विष्णु, महेश या त्रिगुण अर्थात सतोगुण,
रजोगुण और तमोगुण का प्रतीक माना जाता हैं | वास्तव में यह तीन सूत्र मनुष्य के
तीन ऋणों का प्रतीक हैं | जनेऊ, सूत याने कॉटन के अलावा स्वर्ण, रजत, और मोतीयों
के भी पहने जाते हैं |
क्यों धारण किया
जाता हैं जनेऊ ?
जब भी किसी मनुष्य का जन्म होता हैं वह तीन ऋणों के साथ जन्म लेता हैं | वे तीन ऋण
हैं, देव ऋण, ऋषि ऋण, और पितृ ऋण | क्या हैं देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण ? आइये
जानते हैं इन ऋणों के बारे में माहाभारत के इस अंश के माध्यम से .....
क्या जनेऊ केवल
ब्राह्मण धारण कर सकते हैं ?
इस प्रश्न का सीधा उत्तर हैं - नहीं |
जनेऊ हर मनुष्य धारण कर सकता हैं जिसका उपनयन संस्कार हुआ हो | ब्राह्मण,
क्षत्रिय, जाट, चौधरी, चमार, इसका इससे कोई लेना देना नहीं हैं | जिसने भी गुरु से
दीक्षा प्राप्त की हो और जिसका उपनयन संस्कार हुआ हो केवल वह ही जनेऊ धारण करता
हैं | जनेऊ धारण करने के लिए कुल, गोत्र, या जाती का कोई महत्त्व नहीं क्यूंकि हर
मनुष्य को उस पर लगे तीन ऋणों का भार उतारना अनिवार्य होता हैं | यही मनुष्य के
जीवन का प्रथम लक्ष्य भी होता हैं |
छान्दोग्य उपनिषद में एक अद्भुत प्रसंग हैं जिसमे एक वैश्या जबाला का पुत्र सत्यकाम
जाबाल को ब्रह्म ऋषि गौतम उसका उपनयन संस्कार करवाते हैं और उसे अपना शिष्य के रूप
में भी घोषणा करते हैं |
एक वैश्या पुत्र का उपनयन संस्कार और उसे शिष्य के रूप में स्वागत करते देख कुछ
स्थानीय ब्राह्मणों के बीच में इस बात को लेकर असमंजस में पड़ जाते हैं | इस अधर्म
का समाधान हेतु वे राजा से प्रार्थना करते है के वे गौतम ऋषि से ऐसा करने का कारन
जानना चाहते हैं.....
जनेऊ का धारण
स्त्री भी अनेक कालों से करती आई हैं | आज भी इन पौराणिक अवशेषों में शिल्पाकार
द्वारा अलंकृत स्त्रीओं को जनेऊ के साथ देखा जा सकता हैं | इससे यह सिद्ध होता हैं
के स्त्री का जनेऊ धारण करने का प्रचलन पौराणिक कालों में रहा है |
तो आपने जनेऊ क्यों धारण करते हैं जान ही लिया होगा | आपको यह भी बता दे के बटुक
उपनयन संस्कार के समय तीन सूत्र वाला जनेऊ धारण करता हैं | पाणिग्रहण के बाद अपनी
पत्नी के तीन ऋणों को भी पुरुष अपना बना लेता हैं | अतः गृहस्थाश्रम प्रवेश के बाद
पुरुष छः सूत्र वाला जनेऊ धारण करता हैं |
क्यूंकि सन्यासी
समस्त मानव जाती के कल्याण की कामना लिए होते हैं वे नौ सूत्र वाला जनेऊ धारण करते
हैं | तीन अपना, तीन अपनी अर्धांगिनी का और तीन समस्त मानव जाती के प्रतिक के रूप
में |
आशा करते हैं आपको आपणो संस्कृति के संस्करण जनेऊ पर आधारित इस प्रस्तुति से लाभ
हुआ होगा | यदि हाँ तो आपना मत हमारे साथ अवश्य साझा करें | आगे आपको कौनसे भौतिक
या आध्यात्मिक विषय के बार में जिज्ञासा हैं हमे अवश्य बताये | हम प्रयास करेंगे
के आपके प्रश्नों का उचित रूप से समाधान निकाल कर आपके जिज्ञासा को शान्त कर सके |
इस अंक के अंत में मैं यही कहूंगा के मैं कोई पण्डित नहीं हूँ ना ही यह घोषणा करता
हूँ के में सर्वज्ञानी हूँ | बस प्रयास यही करता हूँ के विषयों के बारे में मैं
जितनी जानकारी रखता हूँ वह आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ जिससे लाभ उठा कर आप भी
अपना जीवन सफल बना सके | कदाचित ऐसे करते-करते ऋषि ऋण का बोझ भी अपने ऊपर से उतार
सकूं ! मिलते हैं आपणों संस्कृति के अगले अंक में |
|| हर हर महादेव ||
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