Tuesday 7 April 2015

समाज के नाम संबोधन पत्र




 आदरणीय समाज के पदाधिकारिगनों को प्रणाम और जय श्री कृष्ण |

मैं, चेन्नई से स्वर्गीय जगदीश प्रसादजी उपाध्याय (कोडंबाक्कम) का पुत्र परमानन्द उपाध्याय आपको यह पत्र लिख रहा हूँ | चेन्नई में तारीख ३/०४/२०१५ को समाज द्वारा अध्यक्ष श्रीमान मानक़चन्दजी की उपस्तिथि में अधिवेशन रखा गया था | अधिवेशन में समाज के सभी वरिष्ठ भी उपस्तिथ थे | अधिवेशन में मैंने समाज के नाम पर अपनी बात रखी की समाज में कई लोगों में यह असमंजस हैं की हम औदिच्य है या आमेटा | उसके लिए मुझसे कहा गया था की मैं अपनी बात आपको लिखित रूप में दूं | इसी बात पर मैं, अपने विचार आपके सम्मुख रख रहा हूँ |

महोदय मेरे लिए ये असमंजस की स्तिथि इसलिए है क्यूँकी जब भी मैं अपने समाज के बारे में जानना चाहता हूँ या किसीसे पूंछता हूँ तो यह बताया जाता है की हम सब अमेट गाँव से आये थे इसलिए हम आमेटा ब्राह्मण कहलाते है और ताम्र पत्र को आधार बताया जाता है | विचार करने वाली बात यह है की क्या हम बिना संकोच से कह सकते है की हम सब आमेटा से ही आये है और किसी अन्य क्षेत्र से नहीं ?
ताम्र पत्र का आधार पर भी मेरा प्रश्न चिन्ह इसलिए लगता है क्यूँकी आजतक उस ताम्र पत्र को पढ़ कर ठोस निष्कर्ष पर कोई नहीं पहुंचा | जब भी में ऐसे प्रश्न चिन्ह लगाता हूँ तो आम तौर पर सब को ठेंस पहुँचती है की में पूर्वजों के निर्णयों पर विरोध प्रकट कर रहा हूँ | जहां तक मुझे ज्ञात है सनातन धर्म का आधार ही है प्रश्न लगाना | हर उस बात पर तर्क करना जो हमारे जीवन पर अपना प्रभाव डालती है | हमारे ऋषि मुनियों ने तो स्वयं भगवान (ब्रह्म) पर शास्त्रार्थ कर वेदों और उपनिषदों को सामान्य जीवन तक पहुंचाते थे |  गार्गी और ऋषि याग्वलाक्य के बीच भी भगवान (ब्रह्म) पर शास्त्रार्थ हुआ था जिनका संवाद बृहदारन्यक उपनिषद् में सुरक्षित है | जब ऐसी परम्परा रही हो सनातन धर्म की तो समाज के नाम पर चर्चा करने में संकोच कैसा ? जब हम भगवान पर प्रश्न लगाने को विरोध नहीं कहते तो समाज के नाम पर प्रश्न लगाना विरोध कैसा ?

महोदय जब मैं अपनी प्यास नहीं बुझा पाया तो स्वयं शोध करने लगा | शोध के लिए मैंने कई सामाजिक और जातीय सम्बंधित तथा समाज के सदस्यों द्वारा प्रकाशित पुस्तके पढ़ी | उन पुस्तकों का विवरण नीचे दे रहा हूँ |

पुस्तके लिखना और अपनी बात प्रकाशित कराना अलग बात है, किन्तु जब तक प्रामाणिक बात सामने नहीं आती किसी भी बात को मानना सरल नहीं था | तभी एक शुभ चिन्तक ने मुझे केंद्रीय सरकार द्वारा संचालित मानव शास्त्र विभाग के बारे में बताया | इस विभाग का मुख्य कार्यालय कोलकाता स्तिथ म्यूजियम में उपस्तिथ है | यह विभाग केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय के अधीन आता है | इस विभाग ने १९८५ में एक अभियान चलाया था जिसका उद्देश्य खण्डित जातीय समाज का एकीकरण करना था | अवलोकन करने के बाद उन्होंने विभन्न राज्यों के जातीय इतिहास का पुस्तक प्रकाशित किया | इसी तरह गुजरात और राजस्थान राज्य के जातीय इतिहास की पुस्तक भी प्रकाशित किया | पुस्तक का चित्र यहाँ दे रहा हूँ |

जब मैंने गुजरात और राजस्थान प्रकाशित पुस्तक पढ़ी तब मुझे सब कुछ स्पष्ट होने लगा | गुजरात के पुस्तक में औदिच्य ब्राह्मणों का समपूर्ण विवरण दिया गया है | राजस्थान के पुस्तक में भी ब्राह्मण के विषय में वही विवरण दिया गया है | औदिच्य ब्राह्मण, बागदा ब्राह्मण, हरयाणा ब्राह्मण, श्रीमाली ब्राह्मण, पुष्करन ब्राह्मण, के अलावा कई अन्य जातियों का विवरण भी इसमें दिया गया है | राजस्थान से कुल २२८ समुदाय तथा पुरे भरत में ४६९३ समुदायों का जातीय स्थर पर अवलोकन किया गया | इस पुरे प्रकाशन में कही भी आमेटा ब्राह्मण का नाम तक नहीं था | मुझे आश्चर्य हुआ | पर जब जातीय इतिहास पढ़ रहा था तब यह स्पष्ट हो गया था की सभी समुदाय का नाम अपने-अपने क्षेत्र के आधार रखा गया था | इसी आधार पर जाए तो हम कह सकते है की आमेट या उमेट के क्षेत्र में रहने वालो ब्राह्मणों को आमेटा ब्राह्मण कहते है | पर हमारे समुदाय में यह निश्चिय करना कठीन है की हम सभी आमेटा से ही आये है या दूर-दूर तक किसी प्रकार का सम्बन्ध ही बना सके |


इसका अब समाधान क्या हो सकता है ? कैसे निश्चय किया जाए की हम किस समाज से है ? किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने के बाद हमे किसी भी संशय का स्थान नहीं होना चाहिए तब बात बने |
यदि हमे आमेटा या औदिच्य के निर्णय पर पहुंचना है तो इसकेलिए सबसे सरल उपाय है की हम आमेटा ब्राह्मण और औदिच्य ब्राह्मण का अर्थ समझ जाए तो सब कुछ अपने आप स्पष्ट हो जाए | हमारे पूर्वज किसी भी नाम को बिना अर्थ नहीं रखा करते | आमेटा ब्राह्मण का अर्थ तो हम समझ गए की अमेट या उमेट क्षेत्र से जुड़े ब्राह्मणों को आमेटा ब्राह्मण कहते है | औदिच्य ब्राह्मण के बारे में भी लगभग सभी वांछित है | वासत्व में औदिच्य/उदीची उत्तरीय क्षेत्र को कहा जाता है | जिस तरह दक्षिण को द्रविड़ कहा जाता है उत्तर को उदीची कहा जाता है | इस तरह हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते है की उत्तर क्षेत्र के सभी ब्राह्मणों को औदिच्य ब्राह्मण कहा जाता है |  गुजरात के राजा मूलराज सोलंकी ने भी उत्तर क्षेत्र के ब्राह्मणों को न्योता देने के कारन ही उन्हें औदिच्य ब्राह्मण से संबोधित किया था | क्यूँकी हमारे समुदाय के सारे परिवार एक क्षेत्र सा न होकर विभिन्न क्षेत्र से एकत्र हुए है औदिच्य ब्राह्मण ही सही और उचीत नाम हो सकता है | आज से लगभग चालीस साल पूर्व हमारे समाज द्वारा दान पेटी समाज में बांटी गयी थी | उसका चित्र भी यहाँ प्रस्तुत करता हूँ |

चित्र पर “ श्री. औ. प. द्र, धा पेटी ” अंकित हुआ है | विस्तार में कहा जाए तो “ श्री औदिच्य पंच द्रविड़ धान पेटी ” लिखा गया है | अब हम ये पूंछ सकते है पंच द्रविड़ का क्या अर्थ हो सकता है ? उसका अर्थ हमे नीचे दिए श्लोक से मिलता है |
सारस्वता: कान्यकुब्जा गौड़ा उत्कल मैथिला : । 
पन्चगौडा इति ख्याता विन्ध्स्योत्तरवासिनः ||
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा महाराष्ट्रकाः।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा विन्ध्यदक्षिणे ॥ 

सारस्वत (पंजाब) , कान्यकुब्ज ( बंगाल,नेपाल ), गौड़ ( राजस्थान, हरयाना ), उत्कल (ओड़िशा )          मैथिला ( उ.प्रबिहार ) इन पांच  राज्यो को पंच गौड़ कहा गया है  । 

कर्नाटक, आंध्र , तमिलनाडु (द्रविड़) , महाराष्ट्र और गुजरात को पञ्च द्रविड़ कहा गया है । 

यह श्लोक कल्हण द्वारा लिखित राजतरंगिनी नामक काव्य से लिया गया है | ये काव्य आज भी कश्मीर में प्रचलित है | यह काव्य ११वी शताब्दी में लिखा गया था | औदिच्य को उत्तरीय क्षेत्र से संबोधन किया जाता है और हमारे पूर्वज गुजरात से आए थे |  गुजरात पंच द्रविड़ राज्यों में से एक होने के कारन समाज का नाम “श्री पंच द्रविड़ औदिच्य ब्राह्मण समाज” रखना सर्वदा उपयुक्त और उचित है ऐसा मेरा मानना
है | इस तरह हम अपने अस्तित्व से सदा सर्वदा जुडे रहेंगे और वसुधैव कुटुम्बकम भी सार्थक होगा |

आशा है आप मेरे इस लेख को पढ़ विचार विमर्ष कर मेरे इस कौतुहल पर चर्चा अवश्य करेंगे | निर्णय लेने में किसी भी संकोच का स्थान नहीं होना चाहिए क्यूँकी समाज का नाम सदस्यों को उनके अस्तित्व से जोड़ता है | हमे अपने समाज पर गर्व करना चाहिए | ये सार्थक तभी हो सकता है जब हम किसी को भी कोई संशय न होने दे  | अंतिम निर्णय मैं समाज पर छोड़ता हूँ | मैं प्रार्थना करता हूँ की आप जो भी निर्णय लेंगे उसे समाज के सामने सार्वजनिक कर स्पष्ट रूप और तथ्यों सहित रखेंगे ताकि इस बात पर किसीको भी किसी भी प्रकार का संशय न रहे और अपने समाज के नाम पर गर्व अनुभव करे |

धन्यवाद |
|| हर हर महादेव ||

Thursday 2 April 2015

युवा संगठन का निर्माण



युवा संगठन का निर्माण


        ॐ | मौजूदा युग में साधनों,सुविधाओं और संसाधनों की कोई कमी नहीं है । अर्थाभाव भी कोई बहुत बड़ी समस्या अब नहीं रही । सरकार की असंख्य योजनाएं हैं जो आदमी के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु के बाद तक सामाजिक सरोकारों का निर्वहन करने के लिए समर्थ हैं ।
      पूरा परिवेश लाभकारी माहौल से भरा हुआ है। योजनाओंकार्यक्रमों,परियोजनाओंअभियानों आदि की हर क्षेत्र में भरमार है। मानव जीवन की प्रत्येक इकाई से लेकर परिवारसमाज और समुदाय तक की बहुमुखी तरक्की के लिए ढेरों अवसर खुले हुए हैं ।
      इन सभी के बावजूद अपने विकास के लिए इच्छित इस समंदर से अपनी प्यास बुझाने और क्षुधा मिटाने के लिए सिर्फ हमें प्रयत्न भर करने की आवश्यकता है और इसमें भी यदि कोई कंजूसी करता है तो इसका सीधा सा कारण उसकी दरिद्रता और दुर्भाग्य को ही ठहराया जा सकता है ।
      आज असंख्यों अवसर हैं जिनका लाभ लेने के लिए पूरी जागरुकता और दृढ़ इच्छाशक्ति से यदि काम किया जाए तो किसी न किसी हद तक सफलता की प्राप्ती जीवन निर्माण के लिए बहुत बड़ा सम्बल प्राप्त किया जा सकता है ।
      आज की युवा शक्ति को इस दिशा में गंभीरता के साथ सोचने की आवश्यक है । कई लोग महान लक्ष्य ले तो लेते हैं लेकिन उसके लिए प्रयत्नों को पूरा नहीं कर पाते हैं अथवा किन्हीं बाहरी परिवेशीय हालातों को देख-जान या सुनकर आत्महीनता से ग्रस्त हो जाते हैं। इस स्थिति को समाप्त करने की आज अति-आवश्यक है ।
      सामाजिक नवनिर्माण में युवा शक्ति की महत्त्वपूर्ण भूमिका हर युग में रही है । जिस युग में युवाओं में सक्रियता और सामाजिक भागीदारी ज्यादा होती है वह युग युवाओं के नाम लिखा जाता है और जिस युग में सुप्तावस्था होती है वह अंधेरे में खो जाता है ।
      आज युवाओं से सामाजिक चेतना जगाने और विकास की स्वस्थ तस्वीर सामने लाने के लिए हर क्षेत्र में युवा शक्ति को संगठित होकर कुछ कर दिखाने का इच्छाशक्ति पैदा करना होगा । तभी इतिहास में युवाओं की शक्ति और सामर्थ्य का महत्त्व रेखांकित हो सकता है ।
      समाज और परिवेश को समस्याओं से मुक्त कराकर विकास की दिशा और दृष्टि प्रदान कराने का भार आज की युवा पीढ़ी पर हैयदि वह निश्चय कर ले तो समाज को नई दिशा प्रदान की जा सकती है । मुख्यतः शिक्षास्वास्थ्यखेल सहित समाज-जीवन के तमाम क्षेत्रों में युवाओं की भागीदारी से महान परिवर्तन लाया जा सकता है ।
      समाज में हो रहे हर कार्य से परिचित कराकर विकास के आयामों से सहज ही जोड़ा जा सकता है लेकिन इसके लिए स्वयं युवाओं को समूहों के रूप में आगे आना होगाअपनी समझ विकसित करनी होगी तथा सामाजिक लोगों के भले से जुड़ी जानकारी उन लोगों तक पहुंचानी होगी। यह अपने आप में समाज की सबसे बड़ी सेवा है । इससे न केवल युवाओं का व्यक्तित्व विकास होगा बल्कि समाज में उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी ।
     
    युवाओं के लिए यह भी जरूरी है कि घर चलाने के साथ सामाजिक आत्मनिर्भरता पाने के लिए स्वावलम्बन से जोड़कर युवाओं में अपने पाँवों पर खड़े होने का बेहतर स्तिथि पैदा किया जाए । ऎसा किया जाना आज युवाओं के विकास व स्थायी लोक चेतना का माध्यम हो सकता है ।

युवा संगठन का कार्यावली

1. युवाओं को समाज में हो रहे गतिविधियों से अवगत कराना |
2. युवाओं को समाज के विकास में भाग लेने को प्रेरित करना |
3. संगठित युवाओं द्वारा विविध प्रकार के कार्यक्रम और शिविर का आयोजन करना |
4. नए-नए तकनीकी प्रयोजन द्वारा युवाओं को समाज की ओर आकर्षित कर उन्हें प्रेरित करना |
5. सामाजिक त्यौहार और रीति-रिवाजो का अवलोकन कर उनका पालन करना |
6. युवाओं द्वारा प्राप्त क्षेत्रीय उपलब्धियों का सम्मान कराना |
7. युवाओं को उनके उत्तरदायित्व का बोध करा समाज को सशक्त बनाना |
8. समाज के हर सदस्य से संपर्क सूत्र स्थापित करना जिससे हर एक से परिचय बना सके |
9. और आगे भी हर वह संभव कार्य करेंगे जिससे व्यक्तित्व निर्माण के साथ सामाजिक कल्याण भी हो |

अंत में, सभी समाज के श्रेष्ठियों से निवेदन करते हैं की वे इस युवा संगठन का समर्थन करे और युवाओं के मध्य सामाजिक जागरूकता लाने में अपना भरपूर सहयोग प्रदान करें | धन्यवाद | हर हर महादेव |