Sunday, 30 December 2018

स्वावलम्बन - आत्म-निर्भर होना समाज और व्यक्ति के उत्कृष्ट होने का सूचक हैं |

प्रगति कि ओर वही समाज बढ़ सकता हैं जो अपने सभी वर्गों को सशक्त और संकल्प के सूत्र से बाँध सके | समाज वही प्रेरनास्तोत्र बन सकता है जो अपने सदस्यों के प्रतिभा को उजागर करने के साथ-साथ अन्य सदस्यों के मार्ग को प्रशस्त करते हुए उन्हें स्वावलम्बी होने की प्रेरणा दे सके | ऐसी ही भावना मन में जगाते हुए इस पथ पर हम अग्रसर हुए | प्रयास इस विषय पर वर्षों से था की अपने समाज में भी महिलाओं के लिए एक सामाजिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा सके | करना सभी चाहते हैं किन्तु संकल्प कि कमी के कारन नहीं कर पाते थे | हमने भी यह संकल्प लिया की हम इस विचार को सिद्धि की ओर अवश्य ले जाएँगे | इसी प्रयास में हमने समाज में उन छुपे प्रतिभाओं को खोजना प्रारम्भ किया | कुछ नाम भी सामने आए | ऐसे ही प्रयास में हमने श्रीमती संगीता बाई से संपर्क में आए | उनके मेहन्दी कि कलाकारी फेसबुक पर तो अक्सर छाया करती हैं | हमने संपर्क साधते हुए उनसे आग्रह किया और अपने संकल्प को उनके सामने रखते हुए भेंट करने की प्रार्थना रखी | 30 नवम्बर २०१८ शुक्रवार को प्रत्यक्ष रूप में भेंट की और विषय पर चर्चा को आगे बढ़ाया | अब विचार यह करने लगे के क्या किया जाय और कब ?! क्यूंकि दिसम्बर के दुसरे सप्ताह तक सभी स्कूल कि छुट्टी हो जाती हैं हमने छुट्टी के अवसर का लाभ उठाने का निश्चय किया | एक तो छुट्टियों के साथ साथ अधिक सामाजिक कार्य भी इस समय नहीं होते तो सभी घर पर ही या तो टीवी या नींद और आलस्य के साथ समय व्यतीत किया करते हैं| हमने इस स्थिति को एक अवसर के रूप में देखा और इसका लाभ अपने संकल्प को पूरा करने में उपयुक्त समझा |
कब करना हैं यह तो तय हो गया अब क्या करना हैं इस पर मंथन होने लगा | श्रीमती संगीता बाई ने मेहन्दी और विविध रूप से साड़ी पहनने का दायित्व अपने ऊपर लिया | केक बनाना सिखाने के लिए श्रीमती दीपिका बाई से और एक्यूपंक्चर के लिए श्रीमती मोनिका बाई से संपर्क किया | सब कुछ सेट हो गया, बस अब इस संकल्प को सिद्धि तक पहुँचाना था | विचार को क्रिया में बदलना था | स्वावलम्बन रुपी रैल पटरी पर चल पड़ी |
समाज में पहली बार महिलाओं को लेके इस तरह का कार्यक्रम का आयोजन हो रहा हैं सुन समाज में एक तरह से खलबली सी मच गई | हमे अवगत था की हमारा समाज रूढ़ीवाद रुपी रोग से ग्रस्त हैं जो महिलाओं को किसी भी सामाजिक कार्य में अग्रसर होते नहीं देखना चाहता | वह एक पुरुष प्रधान समाज बने रहना चाहता हैं | हम जानते है की इसके पीछे समाज की मनचाह किसी भी वर्ग को दबाना नहीं अपितु उनके संरक्षण की चिंता के कारन एक भय सा सदैव बना रहता हैं | जब समय के रहते पौधों के बंधन को नहीं काँटा जाय तो वही बंधन पौधों को पेड़ बन्ने में बाधा बन जाती हैं | स्वावलम्बी जैसे शस्त्र के सामने कोई अन्य शस्त्र टिक सकता हैं भला ! स्वावलम्बी होने से व्यक्ति का ही नहीं अपितु समाज का गौरव भी बढ़ जाता हैं | डेवलप्ड और डेवलपिंग नेशन में यही तो अंतर हैं |
यह हमारा ही सौभाग्य है जहाँ हमने मेहन्दी, साड़ी पहनावा, और केक बन्नाने की विधि का आयोजन करना चाहा तभी श्रीमती मधुबाला बाई ने संपर्क किया की वह चाकलेट में पारंगत हैं और इस कार्यशाला में अपना योगदान देना चाहती हैं | यह तो हमारे लिए हर्ष कि बात थी और उन्हें भी हमने अपने सहयोगी दल का सदस्य बना लिया |
दिसम्बर २३-२७ २०१८ तक चलने वाला हमारा आयोजन बड़े ही हर्षोलास से प्रारम्भ हुआ | इन पांच दिनों में  सभी महिला और बहनों ने कुछ नया सीखा तो है ही साथ ही साथ एक सम्बन्ध का भाव भी जोड़ने में हम सफल हुए | यही सम्बन्ध का भाव आने वाले समय में समाज को प्रगति की ओर ले जाने के लिए सहायक सिद्ध होगी |
|| हर हर महादेव ||





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