सभा के प्रारम्भ की घोषणा के साथ श्रीमान जगदीश सा ने माइक थामा और श्रीमान घीसुलाल सा पालीवाल को सभा अध्यक्ष के रूप में चुना गया | उनके साथ ही श्रीमान मानकचंद सा सिलोरा, श्रीमान रतनलाल सा पालीवाल, श्रीमान प्रकाश सा भण्डारी, श्रीमान सुरेश सा पारिख को भी मंच पर स्वागत किया गया | सभा के सामने श्रीमान जगदीश सा जो सभा के संचालन का कार्यभार संभाल रहे थे सभा के सामने गत वर्ष निधन बंधुजनों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए दो मिनट का मौन धारण करवाया | उसके बाद गत वर्ष के आंकड़े और मंदिर निर्माण कार्य का ब्यौरा दिया | मंच पर उपस्थित सभी जनों ने एक-एक कर अपनी बात सभा के सामने रखी | जब सभी ने अपनी बात रखदी तो सभा में उपस्थित बंधुजनों से आग्रह किया की वे भी अपना विचार सामने रखे |श्रीमान संजय सा और श्रीमान सत्यनारायण सा के बाद भाई दिनेश और हमने अपनी बात सभा के सामने रखी | हम जब भी अपनी बात रखते हैं तब इस बात का ध्यान अवश्य रखते है की अपनी बात केवल और केवल समाज के हित की हो और किसी भी व्यक्ति पर ना हो | व्यक्ति वो बड़ा होता है जो दूसरों की बात सुने और उसका उचित उत्तर या समाधान निकाले | परन्तु दुःख की बात यह है की प्रश्न उठाने के कारन हमे और अपने भाई दिनेश को श्रीमान मानकचंद सा द्वारा सभा से निकाल देने को कहाँ | आप विचार कर रहे होंगे कि ऐसा क्या प्रश्न पूछ लिया हमने | भाई दिनेश ने जो युवा संगठन की नियुक्ति प्रक्रिया थी उसका चुनाव करा कर व्यवस्थित ढंग से पुनः प्रारम्भ करने की बात कही | यह बात इसलिए कही क्यूंकि श्रीमान घनश्याम सा सभा में अपनी लाचारिता को दर्शा कर कह रहे थे की दो बार युवा संगठन की सभा बुलाने के बाद भी किसी के द्वारा रूचि नहीं दिखाई गई और निराशा ही हाथ लगी | हमने यह बात कही की अपने पंजीकृत समाज के कुछ नियम होते है जो समाज को उन नियमों का अनुसरण करना होता हैं | हर दो वर्षों में चुनाव और सभी समाज सदस्यों को लिखित रूप में लेखा जोखा पारित करने के प्रावधान को हमने सभा के संज्ञान में लाया | लेखा जोखा के विषय में श्रीमान मानकचंद सा ने उत्तर दिया की केवल बाहर के खाते की प्रतिलिपि ही हम दे सकते है और अन्दर के खाते को हम लिखित रूप में नहीं दे सकते | प्रतियूत्तर में हमने कहाँ की लेख जोखा पूरा खुल्ला क्यूँ नहीं किया जा रहा हैं ? यदि हम ६०० सदस्यों की भी गणना ले तो प्रति व्यक्ति १०००० रूपये का चेक दे तो साठ लाख तक का हिसाब खुला किया जा सकता हैं ! इसमें विलम्ब क्यों ? इतने में उन्होंने अपना आपा खो दिया और हम दोनों भाइयों पर व्यक्तिगत टिप्पणी करने लग गए | अपने अपमान का घूँट पी हम दोनों भाई सभा से निकल लिए |
कुछ विचार करने योग्य बातें :-
६०-७० जन की उपस्थिति के बाद भी केवल चार जनों ने ही अपने विचार सभा के सामने प्रकट किए |
किसी ने भी विचार या प्रस्ताव पर ना ही अपनी सहमति और ना हि अपनी अस्वीकृति जताई |
लगभग चार घंटे में हमने किसी को नींद के झोंके लेते देखे तो किसी को अपने ही धुन में मस्त |
सभी जैसे मौन व्रत लेके बैठे थे | लग ऐसा रहा था जैसे वे कोई आम सभा में नहीं शोक सभा में भाग ले रहे हो |
हम दोनों भाइयों पर व्यक्तिगत टिप्पणी करनेऔरअपमान कर बाहर निकाल देने को कहने के बाद भी किसीने विरोध के स्वर नहीं निकाले | विरोध कि बात इसलिए क्यूंकि किसी को भी किसीको बाहर निकाल देने कि आज्ञा नहीं हैं | चाहे वे सभा अध्यक्ष ही क्यूँ ना हो | यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात हैं |
वैसे तो हर कोई अपने आप को राजा और शेर से कम नहीं आंकता परन्तु समय इतना बलवान होता है की इन पेपर टाइगर के पोल खोल देता हैं |
विवेकयुक्त मन से बाद में विचार किया की अनुचित कहाँ हो रहा हैं ? बंधुजनों में यह लाचारिता क्यूँ ? क्यों कोई भी बन्धु अपनी बात रखने में सामर्थ नहीं जुटा पा रहा ? समाज के प्रति सदस्यों में यह हिन भाव क्यों हैं जैसे की उनका सभा में हो रही बातों से कोई लेना देना ही ना हो ? जब बंधुजनों से इन प्रश्नों पर बात किया तो कहने लगे की यहाँ किसी कि भी बात का कोई मोल नहीं | जो समिति कहे वो सही | कोई भी सदस्य यदि कुछ तीखे विचार रखे तो टालने के लिए यह कह देते है की इस बात का समाधान प्याऊ पर होगा या उनके विचार को अनुचित कह कर बैठा दिए जाते हैं | केवल निराशा के स्वर ही निकल रहे थे की इस समाज का कुछ नहीं हो सकता | क्यूंकि अपना समाज गुण नहीं रूढीवादी से ग्रसित समाज बनकर रह गया हैं | जहां युवाओं को प्रोत्साहन देने के बजाय अपमान का विष पिलाया जाता हैं | ऐसी स्थित में कौन समाज में भाग लेना चाहेगा ? परिस्थिति से निपटना यानी पाशान से अपना सर टकराना जैसा हो गया हैं |
राजस्थान से भी समाचार प्राप्त हुए के आप चेन्नई सभा हमारा समर्थन नहीं करते | कहते है की मारवाड़ सभा ने चेन्नई सभा को यह प्रस्ताव भेजा था इस बार का वार्षिक आम सभा जो जयेष्ठ वद पंचमी (०५/०५/२००८) को होना है उसे ज्येष्ठ मास में स्थगित कर दिया जाय | कारन यह बताते है की इस तिथि के आगे पीछे समाज बंधुओं के घर विवाह सुनिश्चित हुआ हैं तो बंधुजन भाग नहीं ले पाएंगे | परन्तु हमने उनहें बताया की इस तरह का कोई प्रस्ताव चेन्नई सभा में लाया ही नहीं गया था ! प्रस्ताव के बजाय चेन्नई सभा को केवल सूचित किया गया था की समिति ने वार्षिक सभा को अगले ज्येष्ठ में स्थगित करने का प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया हैं | अब यह सभा समिति जाने की इस बात में कितना सत्य हैं | किन्तु एक बात अवश्य है की कोई ना कोई एक दुसरे को अँधेरे में अवश्य रख रहा हैं | एक अव्यवस्था जैसा स्थिति समाज में निश्चित ही दिख रहा हैं |
प्रश्न तो बहुत है किन्तु इसका समाधान क्या हो सकता हैं ? समाज के बंधुजन क्या करे की वे इस निराशावाद स्थिति से आशावाद की और बढ़े ? क्या करे की युवाओं को समाज में भाव सहित भाग लेने का प्रोत्साहन मिले ?
इस प्रश्नों पर कुछ समाधान अपने तरफ से आपके समक्ष रख रहा हूँ |
सबसे पहले आपको ध्यान दिला दूँ कि इस समय हमारे पास कई साधन है जिसके द्वारा हम अपनी बात सभी समाज बंधुओं तक पहुंचा सकते हैं | एक समय था जब साधन की अभाव के कारन समाज की बात केवल सभाओं में ही होती थी | आज हमारे पास फेसबुक, व्हात्सप्प, जैसे सोशल मीडिया है जिसके द्वारा अपनी बात सरलता पूर्वक पहुंचा सकते हैं |
मूक दर्शक बन कर ना बैठे | भले ही आपके लेखन में कोई त्रुटी हो जहां तक आप अपनी बात रखने में सफल हो लेखन पर ध्यान ना दे | बात महत्वपूर्ण है लेख नहीं |
महिला हो युवा हो या अन्य बंधुजन जहां तक हो सके एक्टिव रहे | समाज के बारे में हो रही बातों पर अपनी बात सोशल मीडिया के माध्यम से अवश्य रखे |
आपका मौन ही आपका शत्रु हैं | कोई भी किसी व्यक्ति या समाज के बारे में कोई अनुचित बात करे तो वही उसे टोक दो और अनदेखा ना करें |
जब ऐसा होगा तब आप देखेंगे की कोई भी अनुचित बात करने से पहले दो बार विचार करेगा | हाँ, ऐसा होने में कुछ समय अवश्य लगे परन्तु प्रयास जारी रखें | परिवर्तन अवश्य आयेगा |
कोई अच्छा कार्य करे तो उसका उत्साह बढाने में कोई कंजूसी ना दिखाए | आपका एक उत्साहवर्धक शब्द से किसी के जीवन के साथ साथ समाज में भी उचित बदलाव लाने में सफल होंगे |
निराशा अपने मन में कभी ना लाए | निराश वह होता है जो आशा ही छोड़ दे | आज हम स्वतंत्र देश है तो उसके पीछे सहस्त्रों वीरों का त्याग और बलिदान था | यदि वे निराश हो कर बैठ जाते तो क्या हम एक स्वतंत्र देश हो पाते ? आशा सदैव पाले रखे |
प्रश्नों में उलझने के बजाय समाधान पर अपना ध्यान और ऊर्जा लगाएं | आप देखेंगे की किसी भी समाज में परिवर्तन लाना जो कठिन प्रतीत होता था वह तो बहुत ही सरल दिख रहा हैं |
यदि आप भी अपनी कोई बात साथ में जोड़ना चाहे तो हमे अवश्य बताएं | विचारों की यह प्रवाह निरंतर चलती रहनी चाहिए | प्रगतिशील समाज ही उत्कृष्ट भविष्य बनाने में सामर्थ्य रखता हैं |
हर हर महादेव |