सभी बंधुओं को ब्राह्मण युवा संगठन की ओर से
परमानन्द उपाध्याय का प्रणाम |
बंधुगण आज में आपके साथ इस लेख के
माध्यम से अपने समाज का इतिहास और समाज का प्रारूप आपके साथ साझा करने जा रहा हूँ
| आशा है की हम अपने समाज के इतिहास से आपको अवगत कराने में सफल रहेंगे |
इतिहास ! इतिहास का सभी को जानना उतना ही आवश्यक है जितना की संतान अपने पिता को
जानता हैं | इतिहास को जानना इसलिए भी आवश्यक है क्यूंकि इतिहास से ही हम अपने
सामाजिक संस्कृति और चरित्र को आगे की पीढ़ी तक पहुंचा सकते है | इतिहास वह सूत्र
है जो हमारे पूर्वजों से लेकर भावी पीढ़ी तक को एक सूत्र में बांधे रखता है |
पूर्वजों के कार्य से प्रेरणा ले वर्त्तमान पीढ़ी समाज को दिशा और दशा का निर्माण
कराने में सहायक होती हैं | इतिहास का मान रखना ही हमारे पूर्वजों को हमारे द्वारा
दी जाने वाली सच्ची श्रद्धांजलि हैं |
अपने सामाजिक इतिहास को जानने से पूर्व
आइए अपने समाज में प्रचलित कुछ उपनाम के अर्थ और आधार जानने का प्रयास करते हैं |
क्यूंकि हम इतिहास के बारे में यहाँ चर्चा कर रहे है इसलिए उपनाम का हम संक्षिप्त
विवरण ही प्रस्तुत कर रहे हैं |
उपनाम वस्तुतः व्यक्ति के गुण, कर्म और
मूल स्थान को दर्शाती हैं | उपनाम से व्यक्ति का संबोधन, उपाधि के रूप में भी किया
जाता हैं | उपनाम प्राय सभी अपने नाम के बाद लगाते है | सामान्य स्तिथि में उपनाम
से व्यक्ति का भी परिचय मिलता हैं की वह कौन हैं या क्या करता हैं |
ज्योतिष शास्त्र में रूचि रखने वाले
व्यक्ति को “जोशी” उपनाम से संबोधन किया जाता हैं | लग्न पत्रिका बनाना, कुंडली मिलान करना, इतियादी
इनकी कार्यशैली होती हैं | अतः हम कह सकते है की “जोशी” उपनाम, व्यक्ति को अपने
कर्म के कारण संबोधित किया जाता हैं |
पालीवाल | पाली जिला में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पालिवाल उपनाम से
संबोधित किए जाते हैं | अतः पालिवाल उपनाम व्यक्ति के मूल स्थान या निवास के आधार
पर संबोधित किया जाता हैं | कई स्थान पर लोग संगठित हो पालिवाल ब्राह्मण समाज के
नाम से भी सक्रीय हैं |
जो भी व्यक्ति पीठ पर आसीन हो व्यक्ति और
सामाजिक उत्थान की कामना करते हुए व्यक्ति व समाज को दर्शन एवं शास्त्र से परिचय
कराए उन्हें व्यास उपनाम से संबोधित किया जाता हैं | देश और समाज को दर्शन और
शास्त्र से अवगत कराने में ऋषि वेद व्यास से बड़ा और कौन हो सकता हैं ! इसलिए
प्रवचन देने वाले प्राय सभी महापुरुषों को “व्यास पीठ पर आसीन या आरूढ़” होना कहते
हैं | यहाँ व्यास उपनाम व्यक्ति के “कर्म”
के आधार पर संबोधित किया जाता हैं |
दो वेद के ज्ञाता को द्विवेदी या दवे,
तीन वेद के ज्ञाता को त्रिवेदी, चार वेद के ज्ञाता को चतुर्वेदी उपनाम से संबोधित
किया जाता हैं | अतः यह उपनाम व्यक्ति के
“ज्ञान” के आधार पर संबोधित किया जाता हैं |
संस्कृत में उपाध्याय का अर्थ शिक्षक हैं
| “उप” याने अंतर्गत या बैठना “अध्याय” याने अध्ययन | जिस व्यक्ति के अंतर्गत पाठ
का अध्ययन किया जाता है उन्हें “उपाध्याय” उपनाम से संबोधित किया जाता हैं | यहाँ
उपनाम व्यक्ति के “कर्म” के आधार पर संबोधित किया जाता हैं |
भट्ट का मूल अर्थ संस्कृत में विद्वान
व्यक्ति का संबोधन करना हैं | वैसे हमारे ऋषि मुनि विद्वान तो थे ही किन्तु कुछ
ऐसे भी थे जिनके योगदान से आज भी यह संसार कृतज्ञ हैं जैसे – “आर्यभट्ट”
यहाँ उपनाम व्यक्ति के “गुण” के आधार पर संबोधित किया जाता हैं |
राजस्थान में अजमेर के किशनगढ़ जिले में
स्थित “सिलोरा” नामक गाँव हैं | जिस तरह पाली मूल के निवासी पालिवाल उपनाम का
प्रयोग करते है वैसे ही सिलोरा गाँव के निवासी अपने नाम के पीछे सिलोरा उपनाम से अपने
आप का संबोधन करते हैं | अतः यह उपनाम व्यक्ति के “मूल निवास” के आधार पर संबोधित
किया जाता हैं |
राजस्थान एक मरुस्थल है जिसके कारण यहाँ
खेती भी कम होती हैं | इंद्रा गांधी के द्वारा बनाये गए नहर के बाद ही यहाँ खेती
अधिक मात्रा में होने लगी | खेती ना के
बराबर होने के कारण यहाँ के निवासी प्राय व्यापार में अधिक रूचि रखते थे | अतः
व्यापारियों को बोहरा नाम से संबोधित किया जाता हैं | बोहरा उपनाम का संबोधन यहाँ
“कर्म” से है |
ऋषि सान्डिल्य के वंशज और अनुयायी अपने
गोत्र और आराध्य को ही उपनाम से संबोधित करते हैं | यहाँ उपनाम “श्रद्धा” से
संबोधित किया जाता हैं |
अमूल्य रत्नों के पारखी को पारीख उपनाम
से संबोधित किया जाता हैं | यहाँ उपनाम “कर्म” से संबोधित किया जाता हैं |
जैसे की आपने जाना की जो उपनाम हम प्राय
सभी नित्य उपयोग करते है उसका जन्म से या परिवार से कोई सम्बन्ध नहीं हैं | उपनाम
व्यक्ति के कर्म, गुण, और मूल स्थान के
आधार पर संबोधित किया जाता हैं | जब हम उपनाम के अर्थ और आधार को समझ लेंगे तो हमे
हमारे सामाजिक इतिहास को समझने में अधिक कठिनाई नहीं होगी |
राजस्थान अनेक राजाओं द्वारा राज्य
प्रदेश रहा हैं | जैसे मारवाड़, मेवाड़, हाड़ोती इत्यादि | हर राज्य की अपनी बोली और
संस्कृति रही हैं | मारवाड़ के निवासियों की बोली को मारवाड़ी कहते है और मेवाड़ के
निवासियों की बोली को मेवाड़ी कहते हैं | ऐसे ही शेखावत को शेखावती, और हड राज्य
में हाड़ोती भाषा बोली जाती हैं | इन्ही राजाओं के वंशजों को “राजपूत” नाम से
संबोधित किया जाता हैं |
हमारे पूर्वज कई बार राजनीति के कारणों
से, जीवन व्यापन के लिए, या व्यापार के लिए प्राय अनेक स्थानों में एक समूह बनाकर
स्थानान्तरण किया करते थे | तुर्कों, मुग़लों, और मुसलमान के आक्रमणों और अत्याचार
से भयभीत एक स्थान पर टिक पाना सामान्य नागरीक के लिए दुर्लभ होता था | बस एक गठरी
और लोटा ले जहाँ कही भी जीवन जीने की आशा जगती थी वहाँ चल दिया करते थे | मुसलमान
से स्वतंत्रता प्राप्त हुई तो अंग्रेज ने आक्रमण कर दिया | नित्य आक्रमणों को झेल
रहे हमारे पूर्वज परिवार का हित और समाजिक संस्कृति की रक्षा करने के उद्देश्य से
देश के अलग-अलग कोने में स्थानान्तरण करना प्रारंभ कर दिया |
उत्तर में कश्मीर से
लेकर दक्षिण में तमिलनाडु तक और पूर्व में असम से लेकर पश्चिम के सिन्ध तक फ़ैल गए
| जिसको जहाँ शरण मिलती थी वहाँ अपना डेरा जमा लेते थे | मारवाड़ी समाज की कार्य
कुशलता जगत विख्यात तो है ही किन्तु दुर्लभ जगहों पर भी पहुँच जाना हम लोगों को एक
अलग ही पहचान दिला दी |
इसी पर एक हास्य व्यंग भी लोगों में
प्रचलित है की -
जहाँ ना पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवी
जहाँ ना पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवी और
जहाँ ना पहुंचे बैलगाड़ी वहाँ पहुंचे
मारवाड़ी |
स्थानीय समूहों का स्थानान्तरण की बात तो
अब हम समझ ही गए होंगे | चलिए अब समाज के विभिन्न भागों और खण्डों के बारे में
समझने का प्रयास करते हैं |
विन्ध्याचल पर्वत और अगस्त्य मुनि की एक रोचक
कहानी भी प्रचलित हैं | एक
बार विन्ध्याचल सूर्य का मार्ग रोककर खड़ा हो गया, जिससे सूर्य का आवागमन ही बंद हो गया। सूर्य अगस्त्य मुनि कि शरण में आये,
तब अगस्त्य मुनि ने विन्ध्य पर्वत को स्थिर कर दिया और कहा- 'जब तक मैं दक्षिण देश से न लौटूँ, तब तक तुम ऐसे ही
निम्न बनकर रूके रहो।' ऐसा ही हुआ । विन्ध्याचल नीचे हो गया,
फिर अगस्त्य जी लौटे नहीं, अत: विन्ध्य पर्वत
उसी प्रकार निम्न रूप में स्थिर रह गया और भगवान सूर्य का सदा के लिये मार्ग
प्रशस्त हो गया।
विन्ध्याचल पर्वत शृंखला भारत के पश्चिम
मध्य में स्थित प्राचीन गोलाकार पर्वतों की शृंखला है जो भारत उपखंड को उत्तरी
भारत व दक्षिणी भारत में बांटती हैं |
'राजतरंगिणी' एक ऐसी रचना है, जिसे संस्कृत के
ऐतिहासिक महाकाव्यों का 'मुकुटमणि' कहा जा सकता है। इसके रचयिता कश्मीरी कवि 'कल्हण' हैं। संस्कृत साहित्य में
इतिहास को इतिहास मानकर लिखने वाले तथ्यों को तिथि आदि
के प्रामाणिक-साक्ष्य और क्रम के साथ प्रस्तुत करने वाले ये अब तक ज्ञात पहले कवि
हैं | यही कारण है कि इनकी कृति 'राजतरंगिणी' का देश-विदेश में सर्वत्र आदर हुआ है । इसमें महाभारत-काल से आरम्भ कर 1150
ईसवी तक के कश्मीरी नरेशों का चरित्रांकन किया गया है । इसी राजतरंगिणी
काव्य में एक श्लोक आता है जो निम्न प्रकार हैं |
सारस्वता: कान्यकुब्जा गौड़ा उत्कल मैथिला : ।
पन्चगौडा इति ख्याता
विन्ध्स्योत्तरवासिनः ||
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविडा
महाराष्ट्रकाः।
गुर्जराश्चेति पञ्चैव द्राविडा
विन्ध्यदक्षिणे ॥
सारस्वत
(पंजाब) , कान्यकुब्ज ( बंगाल,नेपाल ),
गौड़ ( राजस्थान, हरयाना ), उत्कल (ओड़िशा )
मैथिला
( उ.प्र, बिहार
) इन पांच राज्यो को पंच गौड़ कहा गया है ।
कर्नाटक, आंध्र , तमिलनाडु
(द्रविड़) , महाराष्ट्र और गुजरात के राज्यों को पञ्च
द्रविड़ कहा गया है ।
अतः
विन्धीय पर्वत के उत्तरीय क्षेत्र को पंच गौढ़ व विन्धीय पर्वत के दक्षिण क्षेत्र को
पंच द्रविड़ से संबोधन करना प्रारंभ हुआ | इस तरह जो ब्राह्मण विन्ध्य पर्वत के
उत्तरीय भाग में रहते है वे पंच गौड़ ब्राह्मण और जो विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में
रहते है वे पंच द्रविड़ ब्राह्मण कहलाने लगे |
हमारे
समाज में कई लोगों के बीच औदीच्य और आमेटा नाम पर मतभेद है की हमारा समाज आमेटा
समाज है तो कोई कहते है की हमारा समाज औदीच्य समाज हैं | इस स्थिति से उभरने के
लिए हमे चाहिए की हम आमेटा और औदीच्य का अर्थ समझे |
जिस
तरह श्रीमल गाँव के वासी श्रीमाली, पाली के वासी पालिवाल, जैसलमेर के वासी जैसवाल कहलाने
लगे उसी तरह आमेट के वासी आमेटा कहलाते हैं | आमेटा समाज से जुड़े होने का दावा
करते हुए ताम्र पत्र की बात भी किया करते हैं | पूर्व समय में सभी प्रकार के
राजकीय लेन देन ताम्र पत्र पर अंकित किया करते थे | यह ताम्र पत्र जो यहाँ
प्रस्तुत की जा रही है यह महारावत जुवथ सिंह सिंघल के आदेश पर मोतीलाल आमेटा
त्रिवेदी नामक ब्राह्मण के नाम आवंटन किया गया ताम्र पत्र हैं | यह ताम्र पत्र एक
प्रकार की सेल डीड कह सकते हैं | केवल इसके आधार पर यह कह देना की हम सभी आमेटा
समाज से है यह उचित नहीं होगा | क्यूंकि ना ही इस ताम्र पत्र में आमेटा समाज की
मान्यता पर कोई टिप्पणी है ना ही समाज के सदस्यों के नाम का उल्लेख हैं |
विविध
महाजनों ने जातिय इतिहास पर पुस्तक भी लिखी लेकिन इनकी प्रामाणिकता का कोई आधार
नहीं है | समय-समय पर
हमारे समाज की ओर से भी संपर्क पुस्तिका छापी गयी | कभी मारवाड़ आमेटा नाम से छापा
गया तो कभी आमेटा तो कभी आमेटा और औदीच्य दोनों नामों का उल्लेख किया गया हैं |
भारत
सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण नामक संस्था
है |
इस संस्था का उद्देश्य विविध समुदायों और सम्प्रदायों में बंटे हमारे देश का
एकीकरण करना हैं | इसी एकीकरण को ध्यान में रख 2 अक्टूबर सं 1985 को के एस सिंह के
नेतृत्व में एक विशाल अभियान पुरे देश में चलाया गया | यह अभियान ३१ मार्च 1992 तक
चला | इस अभियान में लगभद 600 विद्वानों की सेवा ले अलग अलग राज्यों में कुल 4635
विभिन्न समुदायों की खोज कि गई| इन खोज को विस्तार से उन्होंने अलग अलग राज्य के
समुदायों का “पीपल of इंडिया” नाम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित किए |
क्यूंकि
हम अपने समुदाय के इतिहास की चर्चा कर रहे है तो हम केवल गुजरात और राजस्थान पर ही
ध्यान केन्द्रित करेंगे ताकि अपने इतिहास को समझने में हमे कठिनाई ना हो |
पीपल
of इंडिया के गुजरात और राजस्थान के अंक में ब्राह्मणों के बारे में औदीच्य ब्राह्मण
का भी उल्लेख आता हैं | उत्तरीय ब्राहमणों को प्राय यहाँ औदीच्य ब्राह्मण कहा गया
हैं | उत्तरीय को या उत्तर से आने वालों को संस्कृत में औदीच्य कहाँ जाता हैं | जैसे
जैसे लोग दूर दूर तक फ़ैलते गए और क्षेत्र
में अपना समूह बनाते गए वैसे वैसे अपने मतानुसार विभिन्न समुदाय के नाम से संगठित
होते रहे | कोई क्षेत्र के नाम पर समुदाय बना संगठित हुए तो कोई धर्म के नाम पर
समुदाय बना संगठित हुए वैसे ही जैसे विभिन्न उपनाम से लोगों का संबोधन होने लगा |
हमारा
समुदाय सभी वर्ग से जुडा हुआ मिश्रित समाज है | यहाँ पालिवाल, जोशी, उपाध्याय, त्रिवेदी,
भट्ट, इत्यादि सभी संगठित हैं | औदीच्य ब्राह्मण होते हुए क्यूंकि हम दक्षिण भारत
में बसे हुए हैं इस कारण हमारे समाज का नाम “श्री पंच द्रविड़ औदीच्य ब्राह्मण
समाज” ही सर्वदा उपयुक्त और श्रेष्ट नाम हैं |
इस
बात को हमारे समाज के पूर्वज भी पुष्टि करते हैं | आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व
हमारे समाज के पूर्वजों ने सभी सदस्यों को
समाज के नाम से चारा और कबूतर चुग्गे के लिए दान पात्र बाँटे थे |
उस पर भी “श्री
पंच द्रविड़ औदीच्य ब्राह्मण” नाम ही अंकित हैं | इस बात को जब हम समाज के वृद्ध
जनों से साझा की तो उन्होंने हमे यह भी बताया की चंडावल में स्थित प्याऊ का नाम
पहले “श्री पंच द्रविड़ औदीच्य ब्राह्मण समाज” के नाम पर ही था और प्याऊ की जमीन भी
इसी नाम से रजिस्टर की गयी हैं |
बुद्धिमानी
इसी में है की हम पूर्व में घठित घटनाओं पर अधिक बल ना देते हुए यह विचार करे की
हम वर्त्तमान में क्या कर सकते हैं | यदि कही भूल या त्रुटी हुई हो तो उसे कैसे
सुधार कर सकते हैं | सत्य को प्रकाशित कर उपयुक्त आदर समाज को मिले यही हम सबकी ओर
से हमारे पूर्वजों को हमारी ओर से दी जाने वाली सच्ची श्रद्धांजलि होगी |
ब्राह्मण
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आपसे
यह अनुरोध भी करते है की इस लेख को आप अपने परिवार, मित्र और अन्य संघी
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| इस चलचित्र पर अपनी राय या सुझाव कोई हो तो अवश्य दे | धन्यवाद | शुभम् भूयात् |